हम निहारते
रूप काँच के पीछे
हाँप रही है, मछली ।
रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
हे जिजीविषा ।
क्योतो, 10 सितम्बर, 1957
हम निहारते
रूप काँच के पीछे
हाँप रही है, मछली ।
रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
हे जिजीविषा ।
क्योतो, 10 सितम्बर, 1957