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सोभित स्वकीया गनगुन गिनती मे तहाँ / पद्माकर

सोभित स्वकीया गनगुन गिनती मे तहाँ ,
तेरे नाम ही की एक रेखा रेखियतु है ।
कहैँ पदमाकर पगी योँ पति प्रेम ही मे ,
पदमिनि तोसी तिया तू ही पेखियतु है ।
सुबरन रूप जैसो तैसो सील सौरभ है ,
याही ते तिहारो तन धन्य लेखियतु है ।
सोने मे सुगन्ध न सुगन्धन सुन्योरी सोनो ,
सोनो औ सुगन्ध तो मे दोनो देखियतु है ।


पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।