सोयी सुकुमार मेरी सोयी सुकुमार
निद्रा के सागर में
सपनों की डोंगी
पानी में डूबे हैं प्यार के अम्बार
सोयी सुकुमार
लहरें उठीं
और लहरें गयीं
छोड़ गयीं पानी पर पानी का भार
सोयी सुकुमार
दुपहर की लपटों में
पानी के दर्पण
एक-एक दर्पण में दर्पण हजार
सोयी सुकुमार
सूखी हैं पँखुरियाँ
चिटके हैं होठ
पँखुरियों में छुपकर हँसते अनार
सोयी सुकुमार
दिल-सी धड़कती हैं
सपनों में पलकें
पलकों से होठों तक आया संचार
सोयी सुकुमार
सागर की निद्रा में
सीपी ही सीपी
सीपी में मोती के पानी का ज्वार
सागर की लहरों में मोती के हार
सोयी सुकुमार।