सोहत जुगल राधे-स्याम।
नील नीरद स्याम, गोरी राधिका अभिराम॥
पीत बसन सुनील तन पर लसत सोभा-धाम।
नील सारी अति सुसोभित गौर देह ललाम॥
उभय अनुपम रूप-निधि, सृङङ्गार के सृङङ्गार।
सील-गुन-माधुर्य-मंडित अतुल, सुषमागार॥
दिय देह, सुमन अलौकिक सुचि सदा अबिकार।
सर्ब, सर्बातीत, निरगुन, सकल गुन आधार॥
प्रकृति-गत, नित प्रकृतिपर, रस दिय पारावार।
एक नित जो, बने नित दो करत नित्य बिहार॥
करत अति पावन परस्पर प्रेममय यौहार।
स्व-सुख-बांछा-रहित पूरन त्यागमय आचार॥