राग बिलावल
सोहत सहज सुहाये नैन |
खञ्जन मीन कमल सकुचत तब जब उपमा चाहत कबि दैन ||
सुन्दर सब अंगनि सिसु-भूषन राजत जनु सोभा आये लैन |
बड़ो लाभ, लालची लोभबस रहि गयो लखि सुखमा बहु मैन ||
भोर भूप लिये गोद मोद भरे, निरखत बदन, सुनत कल बैन |
बालक-रूप अनूप राम-छबि निवसति तुलसिदास-उर-ऐन ||