♦ रचनाकार: अज्ञात
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सो गये सीताराम चलो सखि
कंचन महल पलंग जड़ित मणि,
सुन्दर सेज मुलायम। चलो सखि...
प्रीतम प्रिया प्रेम युत पोड़े,
कृपासिंधु सुखधाम। चलो...
जुगल स्वरूप अनूप रूप लखि,
मोहित भये रति राम। चलो...
जिन-जिन ध्यान कियो प्रभु पद नित,
तिन-तिन अमृत अराम। चलो...
वंश गोपाल गोपाल लाल छवि,
निरखत आठों धाम। चलो सखि...