पबिया-रधिया दू सौतिन छेॅ, दोनों छेॅ झगड़ाही खूब।
दोनों छै निर्लज्ज बड़ी, दोनों केॅ चिकरै में छै हूब॥
तनी-तनी टा बातोॅ लेॅ दून्हू अन्धेर मचाबै छै।
आजिज टोलोॅ वाला छै, वें जेन्हों रंग रचाबै छै॥
बड़की छै पबिया, रधिया छै, बड़ी बजंता छै।
दोनों छै संतान हीन, विधवा , दोनों रंग-रत्ता छै॥
बड़कीं, छोटकी के घला सें ढारो पानी पीलेॅ छै।
ओकरै लेॅ कुर धुन करलेॅ छै, माथोॅ आज फोड़ैलेॅ छै॥
रधिया बोललै, ”अगे कोढ़िनियाँ! कैन्हें तों पीले पानी?
हम्में नौंड़ी ऐली छी? आरो तोहें बनले रानी?
हे गे छुच्छी! अगे निगोड़ी! हमरै सें करले तकरार।
हम्में की नैं जानैं छीयौ के दौ तोहरोॅ पाँच भतार॥
हाथ नचाय केॅ पबिया बोलली, ”हेगे छोछी! नस कट्टी।
टुटलोॅ खटिया उठबैबौ, तोहरोॅ गे आज बोढ़नझट्ठी॥
कौनें नै ई जानै छौ तों की की करलै छें अन्धेर?
गाँब घिनैलॅ छें तोंहीं तेॅ पेट फुलैले दू-दू बेर॥
अँचरा के फाँड़ोॅ कस्सी केॅ बोलली रधिया देहरी पर।
की-की नै तोहें करलेॅ छें पछियारी बँसबिट्टी तर?
डुबकी मारी केॅ तौहें तेॅ छें पानी पीयै वाली।
आज देखाबै लेॅ चलली छें हमरै सें तों नेतलाली॥“
पबिया बोलली, ”गे हरजैया! हमरा सें तों छें बीसी।
तोहरा कौनें नै जानै छौ तों छें की रङ छत्तीसी॥“
दाँत किची कै दोनों भिड़ली, होलै ऊ झोंटा-झोंटी।
माथोॅ फुठलै दून्हू के केकरे नैं लाल भेलै गोटी॥
बड़की पबिया कोन्टातर गोतनी-नैनी सखियारै छै।
आरो वै कोन्टातर बैठी रेघनी खूब पसारै छै॥
बड़की गेली घोॅर; मगर छोटकी छेॅ हमरै छाया तर।
के जान ओकरोॅ माया की छै ओकरा जी के भीतर॥
रधिया झगड़ाही छै आरो गढ़ली जात-जनानी छै।
सोलह बरसोॅ के विधवा पर चढ़लोॅ मस्त जवानी छै॥
गाछी तर ऊ सिसकी-सिसकी कानी-बाजी रहली छै।
सभ्भैं जानै छै रधिया केॅ ऊ नहली पर दहली छै॥
गामों के गोतनी-नैनी पविया केॅ जाय बुझाबै छै।
हानि-गरानी गामों के बड़की केॅ जाय सुझाबै छै॥
”तों छें बड़ी लान रधिया केॅ बौंसी; ले दू बात सही।
लान समोखी ओकरा जल्दी मिट्ठोॅ-मिट्ठोॅ बात कही॥
अपना अपना कामों केॅ दून्हूं करबे बामें-दहिनें।
तनी-तनी टा बातोॅ लेॅ एतना धिकवा-मत्थन कहिनें?“
पबिया ऐली गाछी तर, बोलली, ”तों चल हमरें किरिया।
देबौ धैलोॅ पाँच भरी केॅ, चलें, भेलौ सांझकोॅ बेरिया॥’
रधियाँ तयौ अकड़ी केॅ कहिये देलकै, ”गे मुँहझौंसी।
मारी-पीटी केॅ चल्ली छें हमरा लानेॅ लेॅ बौंसी॥“
गम खैलकी पबियां तखनी, ओकरा बौंसी लेॅ गेली घोॅर।
यै दून्हू सौतिन के झगड़ा देखै छीयै आठ पहोॅर॥