तेरी बात और है
प्यारे! मेरी और!
मैं निर्झर, खो गया धधकते सागर में,
अनचाहा-आगुन्तक-सा अपने घर में,
सिर से मौर गिरी
मैं हूँ ऐसा सिरमौर!
शीशफूल में रहा कभी आभरणों में,
रस-फल-सा चढ़ गया, निपट जड़-चरणों में,
अब न फलेंगे
कल्पवृक्ष पर आये बौर!
आगत मुझ को विगत नहीं होने देता,
चेतन, अंतिम नींद नहीं सोने देता,
आते-रहते
सौरऊर्जा-वाले दौर!