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स्टिकी नोट / विनोद विट्ठल

(पीले रँग के स्टिकी नोट जो सत्ता के गलियारों और कॉरपोरेट में इस्तेमाल किए जाते हैं)

पहली बार देखने पर लगे थे तुम गेन्दे के फूल की तरह
सजीव, मासूम, सहज, साधारण लेकिन ज़रूरी

इतने ज़रूरी कि बिना कहे रुन्ध जाए गला
और कहने के बाद इतने हल्के जैसे लैण्डलाइन फ़ोन पर मिस हुई कोई कॉल

कभी कहती है ये, कभी कहते हुए भी चुप रहती है
दर्ज होना चाहती है किसी कण्डोम में तैरते पाँच अरब शुक्राणुओं की तरह

जितनी इसकी रिश्तेदारी सच के साथ है, उतनी ही असच के साथ भी
मुखौटे से अलग नहीं है यह, जिसे लगाया ही हटाने के लिए जाता है

कुछ इसका प्रयोग करना चाहते हैं बिना बदनाम हुए
पता नहीं क्यों, साहस की कमी या सुविधा के लिए
जैसे उदार, आत्मीय और अधेड़ प्रेमिका का उपयोग कर लेते हैं प्रेमी बनते कुछ लम्पट

कोई इसका इस्तेमाल
अपराधी की तरह बरसों बाद कर लेते हैं
पाँचवें पैग के बाद कुछ पुरुष सुनाने लग जाते हैं जैसे
मिसेज एक्स या वाई या जेड के ऐक्टिव होने के क़िस्से
पुरानी फ़िल्मों में प्रेमपत्रों का किया जाता था इस्तेमाल जैसे
आज के ज़माने में स्क्रीन शॉट कह लो

कई बार
पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है
एक सड़क सत्तावन गलियाँ
कितनी नावों में कितनी बार
जैसी पँक्तियाँ इसके आस-पास भिनभिनाती हैं

बेहद हल्के और स्थाई रूप से न चिपकने के लिए बने ये पोस्टर
कभी प्रश्न की तरह लगते हैं
कभी चेतावनी में बदलते हैं
कभी कहते हैं
कभी नहीं कहते हैं
व्हाट्स ऐप पर आए किसी रोमाण्टिक शेर की तरह इसे अनदेखा किया जा सकता है
और लिया जा सकता है सीरीयस भी

कई बार धर्म इसकी तरह लगता है
कइयों के लिए क़ानून भी इसी की तरह होते हैं
कई अवसरों की पीठ ढूँढ़ते रहते हैं इसके लिए
कई लगे रहते हैं इसे चिपकाने और हटाने के खेल में

क्यूँ भूल जाते हैं हम
हम भी एक स्टिकी नोट ही हैं
किसी दिन हटा दिए जाएँगे, गुम हो जाएँगे
पाए जाएँगे कूड़े के ढेर में
और किसी दिसम्बर की रात जला भी दिए जाएँगे
जैसे थे ही नहीं इस सृष्टि पर !