हाथ जुड़ गये, शीश झुक गये
देख मनोरम झांकी
स्तम्भित है तन, मोहित है मन
माया लख ईश्वर की
नीला जल, नीलाम्बर नीला
नीलछवि प्रभुता की
अन्दर बाहर एक ही धुन है
उसकी! उसकी!! उसकी!!!
राजहंस मानस में उतरे
चुगते सच के मोती
नीरक्षीर न्याय करते हैं
सुनते धुन अनहद की
ब्रह्मा ने ब्रह्मांड रचाया
स्तुति करें रचना की
चारों और ध्वनि गुंजित हो
सत्य, शिवम्, सुन्दर की
सत्यम, शिवम, सुन्दरम
सत्यम, शिवम, सुन्दरम।