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स्तूप मीनारों से बनी/ हरीश भादानी

स्तूप मीनारों से बनी
ऊंचाइयाँ
इतिहास की
भूतात्माएं होकर जिएं
बदलाव की हवा की
छुअन भर से ही
हो जाएं जो अस्थिपंजर
वे पूज्य कैसे हों
समय के
हम-रूप न हों जो
उन्हें कैसा नमन
रेत पर खोजें
उन्हीं के पांव पर पांव
क्यों चला जाए

मन बरफ़ का
संगमरमरी हो
देह जिनकी
किसी भी जुलाहे के बुने हों
पहनते हों
गेरूए रक्ताभ पीताम्बर
क्यों छुए कोई
इस तरह की छांह
क्यों समर्पित हों
कोई यहां-वहां
वह कोई हो
या फिर तुम
बोधने भर की ही संज्ञा
संयोजा करे
अणु-परमाणुओं से
एक अक्षर
रूप का आकार
आदमी से आदमी का शब्द
अर्थ होने का यतन

ऐसी एषणा तुम्हारी हो
तुम्हें मेरा नमन
ऐसी निर्मिति तुम्हारी
मेरा नमन
अनागत को आकारने की
ऊर्जा तुम्हारी हो
मेरा नमन
            
मई’ 79