मैं सगर्भा, सार्गर्भा , ब्रह्म का विस्तार,
जीव की हूँ वासना तो विज्ञ का संसार ।
शक्ति का अवतार हूँ अस्तित्व का आधार
धारिणी समभाव की कर्षण करूँ अहंकार
कामिनी हूँ 'काम' की हूँ जन्मति भी राम
पुण्य रूपा पापिनी हूँ पुरुष का आयाम,
अग्नि-सी हूँ दाहक पर देती हूँ विश्राम
शव बना सकती हूँ 'शिव',माधुर्यमय घनश्याम
रचनाकाल : 25 फ़रवरी 2009