रसोई ...दफ्तर
स्कूल ...अस्पताल
कल-कारखाने
खेत-खलिहानों में
चहकती ...महकती और
धधकती
अँधेरे से रोशनी कभी....पतझर से बसंत निचोड़ती
चली आ रही है युगों से
सुगन्धित करती हुई दुनिया को।
रसोई ...दफ्तर
स्कूल ...अस्पताल
कल-कारखाने
खेत-खलिहानों में
चहकती ...महकती और
धधकती
अँधेरे से रोशनी कभी....पतझर से बसंत निचोड़ती
चली आ रही है युगों से
सुगन्धित करती हुई दुनिया को।