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स्त्री का दर्द / स्मिता तिवारी बलिया

स्त्री का दर्द
टपकता रहता है अनवरत
ठीक वैसे ही
जैसे रिसता है जल,
किसी अति प्राचीन
जंग लगे नल से
टप-टप-टप-टप;
जिस पर नजरें तो हर-एक की पड़ती है ;
किन्तु;
उसे ठीक करवाना गैर जरूरी सा लगता है...