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स्त्री पुरुष / कविता मालवीय

न तो तुम्हारे पास
चातक पक्षी की
चरित्रगत विशेषताओं का निवेश है
न मेरे पास स्वाति बूंद का
कोई ऐसा खाता है
फिर हर युग में
ऐसी अपेक्षाओं के शेयर बाज़ार में
बड़ी बड़ी बोली लगा कर
दिवालिया क्यों बन जाते हैं
हम तुम?