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स्त्री पृथ्वी है / चित्रा पंवार

1
आसान कहाँ
किसी सूरज के प्रेम में
पृथ्वी हो जाना
ना चुम्बन, ना आलिंगन
ना धड़कनों पर कान धर
सांसों का प्रेम गीत सुन पाना
बस दूर से निहारना
और घूमते रहना
निरंतर
मिलन की प्रतीक्षा लिए
उसी दुखो भरे
विरह पथ पर

2
यकीनन पृथ्वी स्त्री ही है
जो घूमती है उम्रभर
किसी के प्रेम में पड़कर
उसके घर, परिवार
बच्चों को संभालती
चकरघिन्नी बनी
समेट लेती है अपनी दुनिया
अपना सारा वजूद
बस उस एक के इर्दगिर्द

3
स्त्री अगर किसी से प्रेम करती है
तो कभी
उसका साथ नहीं छोड़ती
फिर भले ही उसे
लाख तपिश क्यों न सहनी पड़े
झुलस ही क्यों ना जाए
सूरज के प्रेम में पड़ी
पृथ्वी की तरह

4
पृथ्वी गोल है
बिलकुल सपाट
बहुत कठोर!
यह भ्रम है
कोरा भ्रम
कभी ध्यान से देखना उसकी गहरी आंखों में
मिल जाएंगी तुम्हें
पलकों के नीचे जमी नमकीन झीलें
प्रेम से छूना उसकी सपाट काया को
अनगिनत खरोंचों से भरी उसकी देह
तुम्हारा अंगुली के पोरों को
लहूलुहान कर देगी
धीरे से खोलना उसके मन की गिरहों को
बहुत रीती और पिघली हुई मिलेगी भीतर से
बिलकुल एक स्त्री की तरह

5
जब दोनों हाथों से
लूटी खसौटी जाओ
दबा दी जाओ
अनगिनत जिम्मेदारियों के तले
तुम्हारे किए को उपकार नहीं
अधिकार समझा जाने लगे
तब हे स्त्री
डौल जाया करो ना!
तुम भी
अपनी धुरी से
पृथ्वी की तरह॥

6
कोरी कल्पना
और किस्से कहानी
से अधिक कुछ भी नहीं
ये सारी बातें
की पृथ्वी
टिकी है
गाय के सींग पर
शेषनाग के फन,
सूर्य की शक्ति
या फिर
लटकी है अंतरिक्ष के बीचों बीच
गुरुत्वाकर्षण के बल पर
सच तो यह है
की अपनी करुणा, प्रेम
सृजन और जुनून
के बल पर
स्त्रियाँ लादे
घूम रही हैं
पृथ्वी का बोझा
अपनी पीठ पर
युगों युगों से

7
स्त्री देखती है
नींद में ख्वाब
ख्वाब में घर के काम
दूध वाले, सब्जी वाले का हिसाब
बच्चों का होमवर्क
खोजती हैं पति का रूमाल, मोजा, टाई
दोहराती है सास ससुर के रूटीन हेल्थ चेकअप की डेट
इसी बीच
झांक आती है पल भर को
मायके का आंगन
निरंतर घूमती रहती है एक औरत
अपने कर्तव्य पथ पर
क्योंकि जानती हैं वो
पृथ्वी के रुक जाने का अर्थ
सम्पूर्ण सृष्टि का रुक जाना है।