झुलसा हूँ
सूर्यनारायण की
तीक्ष्ण निगाहों से
भटका हूँ
आग उगलती लू में।
मैं मरूपुत्र
मरूभौम की
रेत का कण हूँ
माँ !
बरसा दो
स्नेह-जल
झुलसा हूँ
सूर्यनारायण की
तीक्ष्ण निगाहों से
भटका हूँ
आग उगलती लू में।
मैं मरूपुत्र
मरूभौम की
रेत का कण हूँ
माँ !
बरसा दो
स्नेह-जल