बंधु! स्नेह का दीप जलाओ।
आलोकित हो जग का कण-कण
ज्योतिर्मय हो जन-जन का मन
तप:पूत नि: स्वार्थ रश्मि से
युग का संचित तिमिर भगाओ।
बंधु स्नेह का दीप जलाओ।
भ्रमित मनुजता पथ पा जाए
भ्रातृ-भाव जग में सरसाए
शांति सौम्य शुचिता की लौ से
घृणा द्वेष का तिमिर हटाओ।
बंधु स्नेह का दीप जलाओ।