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स्नेह भर दो / महेन्द्र भटनागर

आज मेरे मौन बुझते दीप में प्रिय, स्नेह भर दो !

जगमगाए वर्तिका आलोक फैले
लोक मेरा नव सुनहरा रूप ले ले
आर्द्र आनन पर अमर मुसकान खेले

मूक हत अभिशप्त जीवन, राग रंजित प्रेय वर दो !

बन्द युग-युग से हृदय का द्वार मेरा
राह भूला, तम भटकता प्यार मेरा
भग्न जीवन-बीन का हर तार मेरा

जग-जलधि में डूबते को बाँह दो, विश्वास-स्वर दो !