स्नेह मेरे पास है, लो स्नेह मुझसे लो
चल अँधेरे में न जीवन दीप ठुकराओ
साँस के संचित फलों को यों न बिखराओ
पत्थरों से बंधु अपना सिर न टकराओ
मेघमेला विश्व है लो राग मुझसे लो
यह मरुस्थल है, कहाँ जल है पथिक प्यासे
दृष्टि-भ्रम है, मौन मृगजल है, थके तासे
शक्ति खो मत दो भटक कर व्यर्थ आशा से
भूमि में जल है, उठो, लो शक्ति मुझसे लो
तुम तिमिर-रंजित नयन से देख क्या पाए
बंधु भी यमदूत बन कर आँख में आए
कहो, कब तक रहोगे, उद्भ्रांत, अलगाए
प्राण का अवलम्ब लो विश्वास मुझ से लो
(रचना-काल - 1-08-49)