स्मरण-
तब कोई न रहता पास
बस वह
उसका अहसास ।
मैं बाहर आ जाती
अरण्य में
अचानक उग आए
चाँद की तरफ़
या
अन्दर चली जाती
जहाँ
पत्थर से उमग कर
बह रही होती
कोई छोटी-सी जलधार ।
स्मरण
कितना अकेला कर देता
मुझे
उसके साथ ।
स्मरण-
तब कोई न रहता पास
बस वह
उसका अहसास ।
मैं बाहर आ जाती
अरण्य में
अचानक उग आए
चाँद की तरफ़
या
अन्दर चली जाती
जहाँ
पत्थर से उमग कर
बह रही होती
कोई छोटी-सी जलधार ।
स्मरण
कितना अकेला कर देता
मुझे
उसके साथ ।