Last modified on 17 अक्टूबर 2012, at 12:54

स्मृतिपोत / चंद्रभूषण

छूटे हुए लोग कभी नहीं मिलते
क़द-बुत में उनके मिलती हैं
सिर्फ़ उनकी निशानियाँ

कोई जुमला, कोई लहजा,
निगाह का कोई अजब पैंतरा,
जो सजग न रहने पर
अब भी चुभ जाता है

तुम सोचते हो, यह वही है,
जिसकी एक-एक जुंबिश पर
जीना-मरना होता था ?

मगर सोचो ज़रा,
क्या तुम ख़ुद भी वही हो,
एक-एक जुंबिश पर
जीने-मरने वाले ?

अच्छा हो कि छूटे हुए लोग
वापस कभी न मिलें
नहीं मिलेंगे तो रहेंगे हमेशा
समय के घावों से महफ़ूज

सफ़ेद दीवार पर टंगे
रंग-बिरंगे स्मृतिपोत में चलते हुए
सदा-सुखी, सदा-सुंदर, सदा-सत्य

देखने वाले को भी जब-तब
कुछ दूर अपने साथ ले जाते हुए,
जो उसके अब के होने को
कुछ कम बदरंग बनाता है ।