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स्मृतियाँ- 9 / विजया सती

जब कोई नहीं है साथ
बहुत काफी हैं एक दूसरे के लिए
मैं और मेरा एकांत
सताते नहीं एक-दूसरे को हम
कतराते ही हैं एक दूसरे से
झाँक लेते हैं फ्लैट की खिड़की से
हाथों में हाथ डाल साथ-साथ
कबूतरों की उड़ान बिल्लियों की छलाँग
लछलाई नदी के किनारे की चहलकदमी
अनूठी शीतलता से भर देती है
मुझे और मेरे एकांत को!