Last modified on 10 अगस्त 2020, at 15:24

स्मृतियाँ / दीपक जायसवाल

क्या होगा यदि हम भूल जाए
अपनी सारी स्मृतियाँ
शायद तब हम खण्डहर भी
नहीं रहेंगे
क्यूँकि वह भी जीते हैं
अपनी स्मृतियों में
हम जीवित हैं क्योंकि
हमारे पास यादे हैं
क्योंकि हम बना रहे हैं
स्मृतियाँ हर धड़कन के साथ
हर बार फेफड़े में आती जाती
हवा के साथ
मेरा घर मेरी माँ मेरे पिता
मेरा गाँव यह बारिश बचपन दोस्त
यह आकाश और मेरा बगीचा
और मेरी बेवफा प्रेमिका
मेरे भीतर जीवित रहते हैं
जैसे जीवित रहती है मछली
पानी के भीतर
जैसे जीवित रहता केंचुआ
गीली मिट्टी में
स्मृतियों में जीवित रहता हूँ मैं
शाहजहाँ मरा थोड़ी न है?
इतिहासकारों की आँखें नहीं होतीं
वे सुन नहीं सकते
वे हाथों पर बस गिनते हैं
कुछ गिनतियाँ
और कह देते हैं शाहजहाँ मर गयाS