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स्मृति-2 / गोविन्द माथुर

खड़ा हूँ मैं
उस निर्जल स्थान पर
जहाँ कभी बहता था झरना
दूर तक सुनाई देती थी
जल की कल-कल

खड़ा हूँ मैं
उस निस्पंद स्थान पर
जहाँ हँसी बिखरते हुए
मिली थी साँवली लड़की

जल की कल-कल में
हँसी की खिल-खिल में
डूब गए थे मेरे शब्द
जो कहे थे मैंने
उस साँवली लड़की से

खड़ा हूँ मैं
उस निर्वाक स्थान पर
जहाँ मौन पड़े है मेरे शब्द

मेरे शब्द सुनने के लिए
न झरना है
न ही वह साँवली लड़की