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स्मृति / अशोक शुभदर्शी

रिक्त करी देलकै
जबेॅ तोरोॅ विरह नें हमरा
एकदम्मे सें
आरोॅ हमरोॅ पास कुछ्छु नै बचलै
हमरोॅ आँसू केरोॅ सिबाय
तबेॅ मारलियै हम्में
अपना केॅ
तोरोॅ स्मृति सें
कैन्हें कि
कोय उपाय नै छेलै हमरा पास
ई दुखदायी रिक्तता केॅ
मरै के
आरोॅ कोनोॅ दोसरोॅ ।