सिंधु के अरमान को उर में
छिपा जब चॉंद हॅंसता
चॉंदनी के तार पर चढ़
ज्वार नभ की ओर बढ़ता
कुमुद के अलसित नमन में
स्वप्न का संसार पलता
गगन के नीले आयन में
ज्योति का जब दीप जलता
चपल उर अभिसार में जब
कौमुदी उन्मादिनी हो
जब कि पागल चॉंद के मन में
नयन में चॉंदनी हो
भूलने से भी भुलाती
मदिर मधुमय बात कैसे?
भूलने से भी भुलाती
पूर्णिमा की रात कैसे?