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स्मृति / प्रिया जौहरी

तुम्हारी काली बिंदी
आत्मा के दर्पण में चिपकी हुई हैं
मेरे उपन्यासों के पन्नों में
तेरे दो प्रेम पत्र,
एक गुलाब, कुछ सूखी पत्तियाँ,
एक पुरानी फ़ोटो,
और कुछ सपने लपेटे हुए रखे है
जो संवेदनशीलता
से आत्म से बंधे हुए,
समेटे हुए मुझे आज भी
अलमारी के किसी कोने में,
एक लाल रंग की ओढ़नी
काजल की डिब्बी,
आज भी संभाली हुई है
बस एक स्मृति के रूप में,
स्मृति उस प्रेम की
जो कभी हमारे बीच था
वही प्रेम जो जीवन में सावन की
तरह बरसा था
उस प्रेम की सीलन आज
भी मन की दीवारों पर है
कमरे की खिड़की से झांकता हुआ
सावन जब भी बरसता है
बार - बार
वही सब ले आता है
जो एक बार जीवन में
तेरे माध्यम से आये थे।