कहीं से, आई हूँ कुछ भूल!
कसक कसक उठती सुधि किसकी?
रुकती सी गति क्यों जीवन की?
क्यों अभाव छाये लेता
विस्मृतिसरिता के कूल?
किसी अश्रुमय घन का हूँ कन,
टूटी स्वरलहरी की कम्पन,
या ठुकराया गिरा धूलि में
हूँ मैं नभ का फूल।
दुःख का युग हूँ या सुख का पल,
करुणा का घन या मरु निर्जल,
जीवन क्या है मिला कहां
सुधि भूली आज समूल।
प्याले में मधु है या आसव,
बेहोशी है या जागृति नव,
बिन जाने पीना पड़ता है
ऐसा विधि प्रतिकूल!