Last modified on 8 फ़रवरी 2012, at 01:03

स्मृति / सुधीर सक्सेना

उँगलियों की स्मृति में है
स्पर्श,
बाँहों की स्मृति में है
गलबाँह,
वक्ष की स्मृति में है
आलिंगन,
होंठों की स्मृति में है
चुम्बन


स्मृति और कुछ नहीं चाहती
स्मृति चाहती है :
फिर से हरी हों स्मृतियाँ ।