मेरी बचपन की यादों में
जुगाली करते हैं
धुले-नहाए दो बैल
खड़े होकर
द्वार के किसी कोने में
खड़ा होता है हल
कहीं रखी होती हैं
पानी भरी दो बाल्टियाँ
चरवाहा
चरी काट कर लाता है खेत से अब भी
तपती हुई धूप में
आज भी जलते हैं
हरवाहिनों के नंगे पाँव
लू में
नंगे बदन कोई बच्चा
दौड रहा होता है माँ के पीछे-पीछे
हरवाहा जोत रहा है उनका हुआ खेत