Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 17:23

स्यात थूं मुळकै / सतीश छींपा

आज रात भोत सुहावणी सी है
बायरियो बाजै
मुळकती सी धरती
होय रैयी है खांगी सी
पंखेरू नीं है अणमणा
दरखत जतावै आपरी खुसी
पानड़ा खिंड़ा-खिंड़ा’र
स्यात
थूं मुळकण लाग रैयी है.....