स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै अमावस-अंक उज्यारी।
धूप के पुंज मैं ज्वाल की माल सी पै दृग-सीतलता-सुख-कारी।
कै छवि छायो सिंगार निहारि सुजान-तिया-तन-दीपति प्यारी।
कैसी फ़बी घनआनँद चोपनि सों पहिरी चुनि साँवरी सारी॥
स्याम घटा लपटी थिर बीज कि सौहै अमावस-अंक उज्यारी।
धूप के पुंज मैं ज्वाल की माल सी पै दृग-सीतलता-सुख-कारी।
कै छवि छायो सिंगार निहारि सुजान-तिया-तन-दीपति प्यारी।
कैसी फ़बी घनआनँद चोपनि सों पहिरी चुनि साँवरी सारी॥