स्लेट लिखे शब्दों को
गुमसुम क्यों बैठे हो
मन कोरी लाग लिए ।
बांसों के वन गाते
अन्तर में आग लिए
अन्तर में आग, चपल
दृष्टि हो काग-सी
ज़िन्दगी रहे न महज
सागर के झाग-सी
संयम हो बन्ध नहीं
दामन में दाग लिए ।
मौसम कब रोक सका
कोयल का कूकना
ऋतुओं की सीख नहीं
अपने से चूकना
नदियाँ भी राह तकें
मधुर-मधुर राग लिए ।
उतनी ही सृष्टि नहीं
जितनी हम सोच रहे
स्लेट लिखे शब्दों को
पोते से पोंछ रहे
हल करते जीवन, ऋण,
जोड़, गुणा, भाग लिए ।