आज भी सुंदरता के स्वप्न
हृदय में भरते मधु गुंजार,
वर्ग कवियों ने जिनको गूँथ
रचा भू स्वर्ग, स्वर्ण संसार!
आज भी आदर्शों के सौध
मुग्ध करते जन मन अनजान,
देश देशों के कालि’ दास
गा चुके जिनके गौरव गान!
मुहम्मद, ईशा, मूसा, बुद्ध
केन्द्र संस्कृतियों के, श्री राम,
हृदय में श्रद्धा, संभ्रम, भक्ति
जगाते,--विकसित व्यक्ति ललाम!
धर्म, बहु दर्शन, नीति, चरित्र
सूक्ष्म चिर का गाते इतिहास,
व्यवस्थाएँ, संस्थाएँ, तंत्र
बाँधते मन बन स्वर्णिम पाश!
आज पर, जग जीवन का चक्र
दिशा गति बदल चुका अनिवार,
सिन्धु में जन युग के उद्दाम
उठ रहा नव्य शक्ति का ज्वार!
आज मानव जीवन का सत्य
धर रहा नये रूप आकार,
आज युग का गुण है--जन-रूप,
रूप-जन संस्कृति के आधार!
स्थूल, जन आदर्शों की सृष्टि
कर रही नव संस्कृति निर्माण,
स्थूल--युग का शिव, सुंदर, सत्य,
स्थूल ही सूक्ष्म आज, जन-प्राण!
रचनाकाल: दिसंबर’ ३९