मश्क लटकाए खड़ा भिश्ती बोला कि सुनो :
एक गिलास में उतना ही भरा जा सकता है जितना वह खाली है। भरना जारी रखने में वह
न केवल बाहर गिरता है बल्कि अंदर बदलता भी।
कौन सा बाहर है कौन सा भीतर। अब यह बूझने के बूते का नहीं।
वह भी हँसेगा, गिलास का पानी। दोनों। अंदर का पानी भी, बाहर का पानी भी। बिना उम्मीद
के-- बदलता पानी भी।
इतना बोल वह ग़ायब हो गया और मैं गिलास को रोते हुए सुन रहा हूँ।