घड़े फूट जाते हैं
कीच में खड़े हम पाते हैं
कि अमृत और हलाहल
दोनों ही अमोघ हैं
दोनों को एक साथ भोगते हम
अमर और सतत मरणशील
सागर के साथ फिर-फिर
मथे जाते हैं
घड़े फूट जाते हैं
कीच में खड़े हम पाते हैं
कि अमृत और हलाहल
दोनों ही अमोघ हैं
दोनों को एक साथ भोगते हम
अमर और सतत मरणशील
सागर के साथ फिर-फिर
मथे जाते हैं