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स्वर्णमृग / मन्त्रेश्वर झा

तहिया स्वर्ण मृग बहरायल
केबल एक्के बेर
मुदा आब!
स्वर्ण मृग पसरल अछि सौंसे
दौड़ैत छथि ओकरा पाछाँ-राम
निग्रहक तपश्चर्या मे रत
लागल छथि अनवरत महावीर आ गौतम।
बताह छथि ओकरा पाछाँ
बताह अछि लोक
करबाक लेल सीताक अपहरण
बनबाक लेल रावण
बनेबाक लेक सोनाक लंका
बजरल अछि सौंसे संघर्ष
स्वर्ण मृग केँ पकड़बाक लेल
बाप रखैत अछि व्रत
”आजु नाथ एक व्रत
महादुख लागल हे
बिना दिअऽ कोनहुना
हमर पूतके रावण हे।“
आ रामो सोचैत छथि जे रावण सँ
कथी ले लेब मोल झगड़ा
सीता तऽ भेटि जेतीह फेरो
ढाकक ढाक अनेरो
ददेज मे भेटत से अलग
स्वर्ण मृगक कूरी।
मिलि के रहब रावण सँ
तऽ बनि जायब एम एल ए
कि मंत्री, अध्यक्ष, कुलपति, कि प्रजापति
नहि किछु तऽ भेटबे करत दरबारक ठीकेदारी
किन्नहु ने करब कोनो काज उधारी
आ भऽ जायब कमाके बुर्ज
देश आब कत्तेक तरक्की कऽ गेल अछि।
तहिया एक स्वर्ण मृगक लेल,
भऽ गेल छल पूरा रामायण
नारायण-नारायण।
माटि सँ उखड़ल एकटा सीताक लेल
एत्ते मारि पीट, एत्ते खून खराबा।
मुदा आब
केहन शान्ति युग अछि, स्वर्ण युग अछि
एत्ते रास सौंसे पसरल स्वर्ण मृग अछि
आ समेटबाले पसरल अछि एत्ते रास सुख!
तहिया द्रौपदी केँ जूआ मे हारल
छलाह केवल पांडव
आ मचि गेल छल महाभारत
भऽ गेल छल कुलक कुल नाश,
विनाशे विनाश
मुदा आब?
अपन द्रौपदी केँ दाव पर लगाके
फेक रहल छथि पासा
लगौने स्वर्ण मृगक आशा
भारतक समग्र सन्तान।
ओहिमे जे छथि सम्पन्न
से बताह छथि पहिरबा ले
राजपाटक मुकुट
मुदा जे छथि विपन्न
से बनि गेल छथि
कोनो जाबिर मृगशावकक हहकारा
तौला रहल छथि जूआ पर बेचैत अपन चाम।