पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
पींजरे के पार मत जाने मुझे दो
मुक्त नभ के द्वार मत जाने मुझे दो
गीत का विस्तार पर पाने मुझे दो।
बांध दो काया मगर अंतर न बांधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
मेरे पास वह आती नहीं है
जो अधर पर गीत बन जाती नहीं है
मौन रहने के लिए जन्मा नहीं मैं
व्यर्थ मुझ पर व्यंग के तुम शर न साधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।
पास जिनके कुछ न कहने के लिए हो
दर्द जिनको कुछ न सहने के लिए हो
वे रहें ख़ामोश कर स्वीकार बंधन
पर मुझे तुम परिधि के भीतर न बांधो
पंख मेरे बांध दो, पर स्वर न बांधो।