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स्वस्तिका रचो / ओमप्रकाश सारस्वत

द्वार पर
आए हैं मंत्र-उपदेश
आंगन में
स्वस्तिका रचो

स्वर्ग से उतरेगा
कोई संदेश
आंगन में
स्वस्तिका रचो

वे विधि का
लेख बदल देते हैं
वे ताले में
चाबी-सा दखल देते हैं
इनकी कृपा-डोर में
बंधने को
भीड़ में, भीत-सा अटो


वे बड़े

आशीर्वादों के मालिक हैं
वहां बड़े-बड़ों के
नाम दाखल हैं

वे वरमुद्रा में रहते हैं
इनकी खड़ाओं की अगवानी में
स्वागती द्वार पर सजो

वे जितनी देर बतियाते हैं
अहं ब्रह्मस्मि' –प्रचारते हैं
इन्हें जितना भी मिले अवकाश
उसमें खुद को विस्तारते हैं
वे मुस्कुराहट से
वास्तविकता नकारते हैं
चूंकि तुम उनकी
दरी के मोहताज हो
अतः बैठ कर
खड़ताल-सा बजो
अब कविताएं लिखने से
क्या फायदा?
अब सच की तरह दिखने से
क्या फायदा?
तुम भी जितना बड़ा
रच सकते हो,
फ्राड का इतिहास
उतना बड़ा रचकर
शिष्यों को
परमेश-सा दिखो

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