हे साहित्य, कला-आराधक देश विभूति महान,
उमड़ रहे स्वागत हित तेरे मन, मन, मेरे जीवन-प्राण।
जीवन-व्यथा-कथा कविता लिख, तुम करते कल्याण।
पूजूँ क्या? साधन विहिन हूँ, बुद्धि विहीन अज्ञान।
पुष्प-डालियाँ झूम रही, मन-भ्रमर सुनाते गान,
शीतल मस्त समीर मस्त हो गाते स्वागत-गान।
पुलक प्रगट कर रही अवनि पा पद तल तब श्रीमान,
फूले नहीं समाते हम सब हे मेरे मेहमान।
करना क्षमा महा मानव हो उदार सज्ञान,
बसा हृदय में रखना हमको निर्बल, निर्धन जान।
-समर्था,
11.7.85 ई.