नैराश्य से कहीं
तो कहीं कुतर्क से
कभी ह्रदय-हीनता से
तो कभी-हीनता से
तो कभी स्वार्थ-सिद्धि से
यह धरा
यह मानवता
निश्चय ही आहत है
एक सदन बनाया है मैंने
चुन-चुन कर
अक्षरों से
गवाक्षहीन पर
प्राणवायु से पूर्ण
जीवन-साम्भव्य की
सब परिस्थितियाँ
विधमान है उसमें
एक ह्रदय
कुछ त्याग
लेकर आ सको
तो आ जाओ
सह्रदय स्वागत है