स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास हर्ष ले आया है।
जीवन का राष्ट्रीय पर्व
वर्षान्तर में ले आया है।
पीढ़ी, दर पीढ़ी से हमसे
स्वतन्त्रता जब रूठी थी।
और विदेशी शासन को
माया जब बड़ी अनूठी थी।
बाँह थाम उस स्वतंत्रता को
द्वार हमारे लाया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास, हर्ष ले आया है।
शत-शत आँखों के सपने को
तुमने ही साकार किया।
दुध-मुँहों की आँखों को
आजादी का दीदार किया।
असहयोग का अन्त किया,
निर्माण-लक्ष्य ले आया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त
उल्लास हर्ष ले आया है।
गौरव-मन्दिर शून्य पड़ा था,
दीप नहीं जल पाते थे।
गुंज न पाती घंटी थी
औ शंख नहीं बज पाते थे।
प्राण-प्रतिष्ठा कर उसमें
सदभाव मंच ले आया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास हर्ष ले आया है।
बल पाकर तुमसे हमने
शोषित को है आश्वस्त किया।
अन्त बुराई का कर
अच्छाई को है स्थान दिया।
भेद-भाव को दूर हटाने
प्रेम-राग ले आया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास हर्ष ले आया है।
राष्ट्र-पर्व आया जाँचे-
परखें हम अपने कर्मों को।
लेखा-जोखा ले-लेकर
समझें हम अपने धर्मों को।
नवोत्साह से हिय भरने,
संगीत नया ले आया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास हर्ष ले आया है।
आओ लें संकल्प सभी,
निज देश सम्मुन्नत करने का।
प्राणों की बलि देकर भी
भारत की रक्षा करने का।
उत्प्रेरित करने सब को
अभिप्रेरक स्वर ले आया है।
स्वागत है पन्द्रह अगस्त,
उल्लास हर्ष ले आया है।
-देसुआ,
29.7.1975