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स्वाती की रात / दिनेश कुमार शुक्ल

रिमझिम-रिमझिम
अंधकार की छत पर
तारे बरस रहे थे

एक चाँदनी-की-मछली
सिवार में फँस कर
बूँद-बूँद मोती पीती थी,
स्वाती की थी रात
कि जिसमें खुल कर रक्त-कमल खिलते हैं

चन्द्रोदय का जल था
सीपी खुली हुई थी
झड़ी बाँध कर तारे
रिमझिम बरस रहे थे

पाटल पर मोती के सीकर
झलमल-झलमल काँप रहे थे
वह स्वाती की रात
शरद की प्रथम रात थी