अन्तरिक्ष पर उमड़ रहा है
महा प्रलय का बादल
आज फूटने वाला है
सागर में फिर बड़वानल
धधक रही है भीतर-भीतर
ही अन्तर में ज्वाला
आसमान से धूमकेतु है
आज टूटने वाला
स्तब्ध खड़ी हैं सभी दिशाएँ
मौन पड़ा है सागर
बूँद-बूँद कर उमड़ पड़ा है
हालाहल का गागर
अहि-मानव है नया जहर
फिर आज उगलने वाला
दानव दल मानवता को है
पकड़ निगलने वाला
सावधान ओ मानव! अपनी
ताकत फिर पहचानो
पशुबल से सौ गुना मनो-
बल को ताकतवर मानो
तेरे चरणों में दृढ़ता हो
तुम दलितों की आशा
उपनिवेश का पलट दिया है
तुमने उल्टा पासा
नव इतिहास बताएगा
जग को यह अमर कहानी
मिटने वाली है महि से
दानवता की मनमानी