{{KKCatK avita}}
हेरा था
स्नेहमयी आंखों से
पछाड़ों को थामती
उर्मित दृष्टिकोरों से
देती रवानी
रक्त-धार को नयी
मुखर मौन से
मम अंतर मथ
रंजना की
सुस्मित मधुपोरों से
रंजक मन मुकुल
मुकुलित कर
अनंत की सीमा में
रेखा से बांध
दिया मुक्ति का वर।