एक धार मार कर
चली गई
बयार ।
सिहर रहा
मन अब तक,
घाव
आर-पार ।
हँसती है
घास
आस-पास —
हँसते हैं
रक्त-रंगे
ढीठ चिनार !
एक धार मार कर
चली गई
बयार ।
सिहर रहा
मन अब तक,
घाव
आर-पार ।
हँसती है
घास
आस-पास —
हँसते हैं
रक्त-रंगे
ढीठ चिनार !