फूलों को सबसे अधिक अभिमान अपनी आकृति में आने वाली आवृत्तियों को लेकर है ।
हमारी आम समझ के विरुद्ध अपनी गंध को तो वे बंधन समझते हैं और अपने अपमान का स्थायी कारण भी ।
मनुष्य देह की अनगढ़ता और आवृत्तिहीनता फूलों के हास्यबोध और दर्प को ज़िंदा रखती आई है ।
पुराने कवियों की यह बात बेशक सही है कि मनुष्यों को देखकर फूल हँस पड़ते हैं,
लेकिन उसके कारण दूसरे हैं ।