वे हँस रहे,
हँसी के पीछे उढ़के हैं किवाड़
दुख के
तेज़ झकोरे की बारिश,
खुल पड़ने को कपाट अभी जुड़े हैं
वे हँसी से दरवाजे़ को डाटे हुए
उसकी साँकलें बहुत पहले टूटी थीं
सन्नाटे में
कोई ख़याल हँसी के पार
बहुत उदास-सा बैठा है
मार खाये।
वे हँस रहे,
हँसी के पीछे उढ़के हैं किवाड़
दुख के
तेज़ झकोरे की बारिश,
खुल पड़ने को कपाट अभी जुड़े हैं
वे हँसी से दरवाजे़ को डाटे हुए
उसकी साँकलें बहुत पहले टूटी थीं
सन्नाटे में
कोई ख़याल हँसी के पार
बहुत उदास-सा बैठा है
मार खाये।