चोट पाँव में
माथे मरहम,
हँसी न रोके रुके
वाह री ,धनवन्तरि की पीढ़ी ।
मिरगी आए विप्लव जी को
पड़े सुँघाना जूता ।
नए ज़माने का ख़ुद को
कहते जो इब्नबतूता ।
जुगत लगावें, तने न ताने
आसमान में सीढ़ी ।
लोर आँख में दाँतनिपोरी
रमकें राजाजानी ।
हिन-हिन करें अक़ल के घोड़े
घास न दाना -पानी ।
खोड़ दाँत की फिरें दिखाते
मरी न मारे कीड़ी ।
बुद्धिविलासी डींग, हींग में
कस्तूरी को घोलें ।
औंधे करें प्रयोग
तराज़ू से ये मेंढक तोलें ।
विभव जागरण के गुर बाँटें
सूँट-सूँट कर बीड़ी ।
हँसी न रोके रुके, वाह री,
धनवन्तरि की पीढ़ी ।